Sunday, January 13, 2019

Shayari


तीर ताने हुए हूँ दर्पण पर
मैं शिकारी भी हूँ, निशाना भी

मैं ही मेरी आबादी का जरिया भी हूँ
मैं ही मेरी बर्बादी का बहाना भी

खुद ही सीखा है जख्म खाना भी
और जख्मों पे मरहम लगाना भी

वस्ल में थोड़ा बहक जाना भी
हिज्र में दिल को बहलाना भी

खुद से दूर जाने की कोशिश में
खलने लगा है खुद के करीब आना भी

वक्त के इस दहकते दरिया में
डूबना भी है, तैर जाना भी


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